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संविधान का निर्माण, भारतीय संविधान का निर्माण: इतिहास (Maiking of Constitution)

सिविक लेक्सिकन में आपका स्वागत है! हमारा यह ब्लॉग भारतीय संविधान का निर्माण की रोचक यात्रा को दर्शाता है। जानें कैसे डॉ. बी.आर. अंबेडकर और संविधान सभा ने संविधान निर्माण प्रक्रिया में लोकतंत्र की नींव रखी। भारतीय संविधान की विशेषताएँ, इतिहास और महत्व को सरल भाषा में समझें। यह जानकारी विद्यार्थियों, UPSC उम्मीदवारों और जागरूक नागरिकों के लिए उपयोगी है। संविधान सभा की चर्चाएँ और स्वतंत्रता के सपने को जानने के लिए पढ़ें!

संविधान का निर्माण Maiking of Constitution in hindi

परिचय: भारतीय संविधान का महत्व

किसी भी देश का संविधान उस देश का कानून बनाने का प्राथमिक दस्तावेज़ होता है जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। देश ने अन्य सभी कानून संविधान के अंतर्गत ही निर्माण किए जाते है। भारत का संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है। संविधान में विभिन्न कानूनों के साथ साथ स्वतंत्रता, समता और न्याय का प्रतीक है। भारत के संविधान की निर्माण प्रक्रिया भारत के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। जिसमें डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह ब्लॉग आर्टिकल आपको संविधान निर्माण प्रक्रिया, संविधान की विशेषताएं, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर का योगदान आदि के बारे में विस्तार से चर्चा अध्ययन करेगा। 
भारत में संविधान सभा के गठन का विचार सर्वप्रथम 1934 में एम. एन. राय ने रखी, जो भारत के वामपंथी (Communist) आंदोलन के प्रमुख नेता थे। 1935 में पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा के गठन की मांग की। 1938 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने घोषणा की कि स्वतंत्र भारत के लिए संविधान का निर्माण वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनी गई संविधान सभा द्वारा किया जाएगा। 
लोकतांत्रिक भारत के लिए मसौदा, संविधान सभा द्वारा तैयार किया गया था। इस कार्य में कुल दो वर्ष ग्यारह महीने और अठारह दिन (2 years 11 months and 18 days) का समय लगा। इस दौरान कुल ग्यारह सत्र आयोजित किए। अंततः 26 नवम्बर 1949 को संविधान को अपनाया गया, जो 26 जनवरी 1950 के दिन से प्रभावी हुआ। इस दिन को वर्तमान में गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

संविधान सभा का गठन 

संविधान सभा का गठन केबिनेट मिशन द्वारा सुझाए गए प्रस्तावों के आधार पर नवंबर 1946 में किया गया था। संविधान सभा में कुल सदस्य संख्या 389 होनी थी। इसमें से 296 सीटें ब्रिटिश भारत और 93 देसी रियासतों को आवंटित की जानी थी। 
संविधान सभा के लिए चुनाव जुलाई अगस्त 1946 में हुआ। ब्रिटिश भारत की 296 सीटों पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 208, मुस्लिम लीग को 73 और 15 सीटें स्वतंत्र व छोटे समूह को मिली। 93 सीटों पर से देसी रियासतों ने स्वयं को संविधान सभा से अलग कर लिया। संविधान सभा में प्रत्येक समुदाय हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, आंग्ल भारतीय, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और महिलाएं भी शामिल थी। 

संविधान सभा की कार्यप्रणाली 

संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई। मुस्लिम लीग ने इस सभा का बहिष्कार किया। इस सत्र में डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को संविधान सभा का अस्थायी अध्यक्ष पद के लिए चुना। जबकि बाद में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सभा का स्थाई अध्यक्ष चुना गया। 
13 दिसंबर 1946 को संविधान सभा के सम्मुख पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव के संविधान के ढांचे की एक झलक दिखाई देती है। इस प्रस्ताव को 22 जनवरी 1947 को संविधान सभा द्वारा सर्व सम्मति से स्वीकार कर लिया गया। 

संविधान सभा की समितियां 

  • संघ शक्ति समिति: पंडित जवाहरलाल नेहरू 
  • संघीय संविधान समिति: पंडित जवाहरलाल नेहरू 
  • प्रांतीय संविधान समिति: सरदार पटेल 
  • प्रारूप समिति: डॉ. बी आर अंबेडकर 
  • मौलिक अधिकारों, अल्पसंख्यकों एवं जनजातीय तथा बहिष्कृत क्षेत्रों के लिए सलाहकार समिति: सरदार पटेल 
  • प्रक्रिया नियम समिति: डॉ. राजेंद्र प्रसाद 
  • राज्यों के लिए समिति: पंडित जवाहरलाल नेहरू 
  • संचालन समिति: डॉ. राजेंद्र प्रसाद 

प्रारूप समिति 

सभी समितियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण समिति प्रारूप समिति थी, जिसकी अध्यक्षता डॉ. बी आर अंबेडकर कर रहे थे। इस समिति का गठन 29 अगस्त 1947 को हुआ। इस समिति को नए संविधान का प्रारूप तैयार करने की ज़िम्मेदारी दी गई। इस समिति में कुल सात सदस्य थे, जिन्होंने संविधान का प्रारूप बनाया। 

  1. डॉ. बी. आर. अंबेडकर (अध्यक्ष)
  2. एन. गोपालस्वामी आयंगार 
  3. अल्लादी कृष्णमस्वामी अय्यर 
  4. डॉ. के. एम. मुंशी
  5. सैयद मोहम्मद सादुल्ला 
  6. एन. माधव राव (बी. एल. मित्र के स्थान पर)
  7. टी टी कृष्णमचारी (डी. पी. खैतान के स्थान पर)

विभिन्न समितियों के प्रस्तावों पर विचार करने के बाद प्रारूप समिति ने संविधान का पहला प्रस्ताव पेश किया। जिसे फरवरी 1948 में प्रकाशित किया गया। प्रकाशन के बाद लोगों के सुझाव के बाद प्रारूप समिति ने अक्टूबर 1948 में संविधान को पुनः प्रकाशित किया गया। 

संविधान का पाठन

डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने संविधान सभा में 4 नवंबर 1948 को संविधान का अंतिम प्रारूप पेश किया। इस बार संविधान का पहला पाठन हुआ। जो 9 नवंबर 1948 (5 दिनों) तक संविधान पर आम चर्चा हुई। 
15 नवंबर 1948 से संविधान का द्वितीय पठन प्रारंभ हुआ। इस बार संविधान पर खंडवार विचार किया गया। यह पठन 17 अक्तूबर 1949 तक चला। 
संविधान का तृतीय पाठन 14 नवंबर 1949 से शुरू हुआ। डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने "the constitution is settled by the assembly be passed" प्रस्ताव पेश किया। संविधान के प्रारंभ इस प्रस्ताव को 26 नवंबर 1949 को पारित घोषित किया गया। उस दिन संविधान सभा में कूल 299 सदस्यों में से केवल 284 सदस्य ही मौजूद थे, जिन्होंने संविधान पर हस्ताक्षर किए। 

26 नवंबर 1949 को अपनाए गए संविधान में एक प्रस्तावना, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थी। डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने संविधान निर्माण महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें 'भारत के संविधान का पिता' भी कहा जाता है। 

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ

  • विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान: भारत का संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है। वर्तमान संविधान में लगभग 470 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियाँ और 25 भाग है। संविधान का लंबा होने का कारण भारत में विद्यमान सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक विविधता है।  
  • लोकतांत्रिक गणराज्य: संविधान भारत को संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करता है। लोकतांत्रिक राज्य का अर्थ है, जनता की सर्वोच्च और निर्वाचित सरकार से है। जिसे जनता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से चुनती है। 
  • धर्मनिरपेक्षता: धर्मनिरपेक्ष का अर्थ है, भारत का कोई राष्ट्रीय धर्म नहीं होगा। राज्य सभी धर्मों का समान समान संरक्षण और स्वतंत्रता प्रदान करेगा। व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार किसी भी धर्म को चुनने के लिए स्वतंत्र होगा। 
  • मौलिक अधिकार: संविधान के भाग तीन में अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 तक मौलिक अधिकारियों का वर्णन मिलता है। जिसमें सभी नागरिकों के लिए समानता, स्वतंत्रता, शिक्षा का अधिकार जैसे अधिकारों का जिक्र किया गया है। ये अधिकार व्यक्ति के सर्वोच्च विकास के आवश्यक है, और व्यक्ति को सरकार के मन माने शासन से सुरक्षित रखते है। इन अधिकारों की रक्षा भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका करती है। 
  • राज्य के नीति निर्देशक तत्व: भारत के संविधान के राज्य के नीति निर्देशक तत्व आयरलैंड के संविधान से लिए गए है। नीति निर्देशक तत्व सरकार को लोक कल्याणकारी नीतियां बनाने के लिए दिशा निर्देश देते है, जैसे शिक्षा, रोजगार, महिला पुरुष समानता आदि। 
  • मौलिक कर्तव्य: 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा जोड़े गए मौलिक कर्तव्य नागरिकों को देश के प्रति जिम्मेदारी याद दिलाते है। इन मौलिक कर्तव्यों के देश के राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय की एकता अखंडता का पालन करना आदि शामिल है। 
  • स्वतंत्र न्यायपालिका: संविधान में एकीकृत न्यायपालिका का प्रावधान किया गया है। जिसमें राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय और केंद्रीय स्तर पर उच्चतम न्यायालय का गठन किया गया है। जो संसद और कार्यपालिका से पृथक है। 
  • संशोधन की प्रक्रिया: अनुच्छेद 368 में संविधान संशोधन संबंधित प्रावधान है। भारत का संविधान संशोधन प्रक्रिया न तो ब्रिटेन की तरह अत्यधिक आसान है और न ही अमेरिका की तरह अत्यधिक कठिन है। 

संविधान का लागू होना

26 नवंबर 1949 को संविधान को आंशिक रूप से लागू किया गया था, जबकि पूर्ण संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था। जिस दिन को वर्तमान में गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। संविधान निर्माताओं ने इसी दिन को इसलिए चुना क्योंकि 26 जनवरी 1930 के दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज दिवस मनाया गया था। 

डॉ. अंबेडकर की भूमिका: 

डॉ. अंबेडकर ने भारतीय संविधान के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह भारतीय संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष थे और उन्होंने संविधान को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिससे भारत के सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सुनिश्चित हो सके।

प्रारूप समिति के अध्यक्षः डॉ. अंबेडकर को 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा की मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, जो संविधान के मसौदे को अंतिम रूप देने के लिए जिम्मेदार थी.
संविधान को आकार देनाः उन्होंने संविधान को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, सुनिश्चित किया कि इसमें सभी नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए मजबूत प्रावधान शामिल हों.
अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर ध्यानः उन्होंने संविधान सभा में अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर चर्चा करते समय अपने विचार रखे और संविधान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रावधानों को शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
संविधान के जनकः डॉ. अंबेडकर को भारतीय संविधान के जनक के रूप में जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने और उसे तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
सामाजिक न्यायः उन्होंने सामाजिक न्याय और समानता के लिए संघर्ष किया और संविधान में इन मूल्यों को शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 





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