यह ब्लॉग आर्टिकल 'civic lexicon' द्वारा लिखा जा रहा है। इस ब्लॉग में भारतीय संविधान परिचय अर्थात् प्रस्तावना की संपूर्ण जानकारी दी जा रही है।
परिचय (introduction)
26 नवंबर 1949 के दिन संविधान सभा ने संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित व आत्मार्पित (Adopt, Enact & Give to ourselves) किया। 24 जनवरी 1950 के दिन संविधान सभा की अंतिम सम्मेलन हुआ और सभी संविधान सभा के सदस्यों ने संविधान पर हस्ताक्षर किए। 26 जनवरी 1950 को संविधान का अधिकतम भाग लागू (Consititution come into force) किया गया। संविधान लागू करने के लिए सुविधा सभा ने ये दिन इसलिए चुना क्योंकि इस दिन 1930 (26 जनवरी 1930) में लाहौर में पूर्ण स्वराज दिन घोषित किया गया था।
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प्रस्तावना के तत्व (Ingredients)
1) संविधान के अधिकार का स्रोत:
"हम भारत के लोग" अर्थात् संविधान का अधिकार स्रोत भारत के लोग है। संविधान की प्रस्तावना के प्रारंभ में लिखा है कि भारत के लोग ही सत्ता का स्रोत है और भारत का संविधान भारत के लोगों की इच्छा पर निर्भर करता है। इसका मतलब यह है कि भारत के नागरिकों के पास अपने प्रतिनिधियों को चुनने की शक्ति है। भारत संघ बनाम मदन गोपाल काबरा (1954) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि भारत के लोग ही संविधान का स्रोत है जैसा कि प्रस्तावना में लिखा है।
2) भारत की प्रकृति:
प्रस्तावना में भारत की प्रकृति संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्र घोषित किया गया है।
संप्रभु (Sovereign)
प्रस्तावना में भारत को एक संप्रभु राज्य कहा गया है जिसका अर्थ है राज्य का स्वतंत्र अधिकार। इसका मतलब राज्य का अपने हर विषय पर नियंत्रण है और किसी अन्य प्राधिकरण या बाहरी शक्ति का उस पर कोई नियंत्रण है। भारत के पक्ष में देश की विधायिका के पास शक्तियां प्राप्त है। संसद ही संविधान द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को ध्यान में रख कर कानून निर्माण करती है।
समाजवादी (Socialist)
समाजवादी शब्द प्रस्तावना में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के द्वारा जोड़ा गया था। समाजवादी शब्द लोकतांत्रिक समाजवाद को दर्शाता है। समाजवाद का अर्थ एक राजनीतिक-आर्थिक प्रणाली जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्रदान करती है। इसका अर्थ अवसर की समानता और लोगों के लिए बेहतरीन जीवन स्तर के रूप में समझा जा सकता है। डी एस नकारा बनाम भारत संघ (1982) न्यायालय ने समाजवादी शब्द की व्याख्या करते हुए कहा है कि "समाजवाद का मूल उद्देश्य देश के व्यक्तियों को एक सभ्य जीवन स्तर प्रदान करना है।
धर्मनिरपेक्ष (secular)
धर्मनिरपेक्ष शब्द मूल प्रस्तावना में नहीं था, इसे 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया था। धर्मनिरपेक्ष राज्य होने का अर्थ है कि भारत का कोई आधिकारिक धर्म नहीं होगा। नागरिकों के अपने जीवन के दृष्टिकोण और विचार से अपने पसंद का धर्म चुन सकता है। राज्य नागरिकों को अपनी पसंद अनुसार धर्म को पालन करने की अनुमति प्रदान करता है। राज्य किसी धर्म के साथ भेद भाव नहीं करता व सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करता है।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है इसका प्रमाण मूल संविधान के अनुच्छेद में भी दिखाता है जैसे अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार, अनुच्छेद 15 और 16 धर्म के आधार पर भेद भाव नहीं, अनुच्छेद 25 से 28 धर्म को पालन करने संबधी अधिकार।
एम पी गोपालकृष्णन नायर बनाम केरल राज्य (2005) मामले में न्यायालय ने धर्मनिरपेक्ष राज्य का अर्थ बताते हुए कहा है कि धर्मनिरपेक्ष राज्य नास्तिक समाज से भिन्न है, जिसका अर्थ है कि राज्य सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार करता है।
लोकतांत्रिक (democratic)
भारत एक लोकतांत्रिक देश है अर्थात् भारत में सर्वोच्च सरकार चुनने का अधिकार नागरिकों के पास है। भारत में सभी स्तरों पर नागरिकों द्वारा चुनी हुई सरकार ही शासन करती है। संघ, राज्य और स्थानीय स्तर पर भी नागरिक ही सरकार का चुनाव करते है और इस प्रक्रिया में किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म या लिंग के आधार पर भेद भाव नहीं किया जाता है।
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (2002) के मामले में न्यायालय ने कहा कि सफल लोकतंत्र की बुनियादी आवश्यकता लोगों की जागरूकता है। निष्पक्ष चुनाव के बिना सरकार का लोकतांत्रिक स्वरूप जीवित नहीं रह सकता क्योंकि निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की आत्मा हैं। लोकतंत्र मानवीय गरिमा, समानता और कानून के शासन की रक्षा करके जीवन के तरीके को भी बेहतर बनाता है।
गणतंत्र (republic)
भारत में सरकार का स्वरूप गणतंत्रात्मक है क्योंकि राज्य का मुखिया निर्वाचित होता है, न कि राजा या रानी जैसा कोई वंशानुगत राजा। इसका अर्थ है कि एक निश्चित अवधि के लिए राज्य के मुखिया को चुनने की शक्ति लोगों के पास है। इसलिए, निष्कर्ष रूप में, 'गणतंत्र' शब्द एक ऐसी सरकार को दर्शाता है जहाँ राज्य का मुखिया किसी जन्मसिद्ध अधिकार के बजाय लोगों द्वारा चुना जाता है। हमारे प्रस्तावना में सन्निहित यह शब्द दृढ़ता से दर्शाता है कि देश लोगों द्वारा चलाया जाएगा न कि चुने गए लोगों की इच्छा से। देश के लोगों की इच्छा को प्राथमिकता देते हुए हर चीज और हर चीज का कानून बनाया जाएगा, उसे क्रियान्वित किया जाएगा और शासित किया जाएगा।
3) संविधान का उद्देश्य:
प्रस्तावना में देश के सभी नागरिकों को 'न्याय', 'स्वतंत्रता', 'समानता' और 'बंधुत्व' सुनिश्चित करने की घोषणा की गई है।
न्याय न्याय शब्द में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय शामिल हैं।
• सामाजिक न्याय - सामाजिक न्याय का मतलब है कि संविधान जाति, पंथ, लिंग, धर्म आदि के आधार पर भेदभाव रहित समाज बनाना चाहता है। जहाँ वंचित लोगों की मदद करके लोगों को समान सामाजिक दर्जा मिले। संविधान उन सभी शोषणों को खत्म करने की कोशिश करता है जो समाज में समानता को नुकसान पहुँचाते हैं।
• आर्थिक न्याय - आर्थिक न्याय का मतलब है कि लोगों के बीच उनकी संपत्ति, आय और आर्थिक स्थिति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। इसका मतलब है कि धन का वितरण उनके काम के आधार पर होना चाहिए, किसी अन्य कारण से नहीं। हर व्यक्ति को समान पद के लिए समान वेतन मिलना चाहिए और सभी लोगों को अपनी आजीविका के लिए कमाने के अवसर मिलने चाहिए।
• राजनीतिक न्याय - राजनीतिक न्याय का मतलब है कि सभी लोगों को बिना किसी भेदभाव के राजनीतिक अवसरों में भाग लेने का समान, स्वतंत्र और निष्पक्ष अधिकार है। इसका मतलब है कि सभी को राजनीतिक कार्यालयों तक पहुँचने और सरकार की प्रक्रियाओं में समान भागीदारी का समान अधिकार है।
स्वतंत्रता
स्वतंत्रता का अर्थ लोगों की बिना किसी गतिरोधों या प्रतिबंधों के व्यक्ति को अपने पूर्ण विकास के लिए अवसर प्रदान करना है। प्रस्तावना प्रत्येक व्यक्ति के लिए विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और उपासना की स्वतंत्रता या स्वतन्त्रता प्रदान करती है। किसी भी लोकतंत्र के लिए परम आवश्यक है कि वहां के व्यक्तियों के विकास हेतु पूर्ण स्वतंत्रता मिले। किंतु स्वतंत्रता के अंतर्गत यह शामिल नहीं है कि व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है, स्वतंत्रता जन कल्याण को ध्यान में रखकर संविधान में उल्लेखित प्रतिबंधों के अधीन दी गई है।
समानता
समानता शब्द का तात्पर्य प्रत्येक व्यक्ति के लिए समान दर्जा और अवसर से है। अर्थात् समाज के सभी वर्ग के लिए विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति और किसी प्रकार का भेदभाव मुक्त समाज का निर्माण करना है। सभी व्यक्तियों को विकास के समान अवसर प्राप्त होंगे।
बंधुत्व
बंधुत्व शब्द से अर्थ है कि भाईचारे की भावना, संविधान प्रस्तावना के माध्यम से भाईचारे की भावना का विस्तार करता है। बंधुत्व शब्द का उद्देश्य राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने के साथ-साथ प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करने की प्रतिज्ञा करना है।
4) संविधान लागू होने की तिथि
इसमें इसके अपनाए जाने की तिथि 26 नवंबर, 1949 बताई गई है। 26 नवंबर 1949 के दिन संविधान सभा ने संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित व आत्मार्पित (Adopt, Enact & Give to ourselves) किया।
प्रस्तावना संविधान का भाग ?
संविधान की व्याख्या में सहायक प्रस्तावना
प्रस्तावना में संशोधन
प्रस्तावना संविधान का एक भाग है और इसमें संशोधन हो सकते है किंतु ऐसा कोई संशोधन संभव नहीं है जो संविधान की मिल विशेषताओं का उल्लंघन करता हो। प्रस्तावना के अब तक केवल एक बार संशोधन हुआ है। जो कि 1976 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान हुआ है। 42वां संविधान संशोधन 1976 के द्वारा प्रस्तावना में तीन शब्द जोड़े गए : समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
Que: क्या प्रस्तावना संविधान का भाग है ?
Ans: हां, प्रस्तावना संविधान का भाग है। केशवानंद भारती मामला (1973) और LIC ऑफ इंडिया मामला (1995) के उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णय में प्रस्तावना को संविधान का भाग माना है।
Que: क्या प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है ?
Ans: हां, अब तक प्रस्तावना में एक बार संशोधन किया गया है, जो कि 42 वां संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा किया गया है। जिसे उच्चतम न्यायालय ने वैध माना है।
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